HINDI EXPLAIN (POETRY QUIZ) || BIHAR BOARD CLASS 12 Leave a Comment / By / HINDI EXPLAIN - (POETRY QUIZ) 1 / 40 1.फिर भी रोता ही रहता है, नहीं मानता है, मन मेरा बड़ा जटिल नीरस लगता है, सूना सूना जीवन मेरा पुत्र - वियोग अधिनायक कड़बक 2 / 40 2. पूरब - पश्चिम से आते है, नंगे नर -कंकाल सिहांसन पर, बैठा उनके तमगे कौन लगाता है | अधिनायक सूर के पद कड़बक 3 / 40 3. आज दिशाएं भी हँसती है, है उल्लास विश्व पर छाया, मेरा खोया हुआ खिलौना, अब तक मेरे पास न आया | पुत्र - वियोग अधिनायक छप्पय 4 / 40 4. जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है | अधिनायक पुत्र -वियोग उषा 5 / 40 5. धनी सो पुरुख जस कीरति जासू | फूल मरै पै मरै न बासू || कड़बक पुत्र-वियोग अधिनायक 6 / 40 6. शीत न लग जाय इस भय से नहीं गोद से जिसे उतारा, छोड़कर काम दौड़कर आयी माँ कहकर जिस समय पुकारा || पुत्र-वियोग कड़बक अधिनायक 7 / 40 7. जहाँ मरू ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती, उन्ही जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन | प्यारे-नन्हे बेटे को तुमुल कोलाहल कलह गाँव का घर 8 / 40 8. राष्ट्गीत में भला कौन वह भाग्य विधाता है, फटा सुथना पहने जिसका गन हरचरना गाता है | अधिनायक गांव का घर गाँव का घर 9 / 40 9. पंचायती राज में जैसे खो गए पंच परमेश्वर बिजली बत्ती आ गयी कब की | गाँव का घर अधिनायक पुत्र-वियोग 10 / 40 10. बड़ा कठिन है, बेटा खोकर, माँ को अपना मन समझाना | पुत्र- वियोग अधिनायक गाँव का घर 11 / 40 11 . एक नैन कवि मुहमद गुनी | सो बिमोहा जेई कवि सुनी || कड़बक पुत्र -वियोग अधिनायक 12 / 40 12. जो रस यशोदा बिलसत, सो नहि तिहौ भुवानियां, भोजन करि नन्द सूरदास के पद पुत्र वियोग प्यारे नन्हे बेटे को 13 / 40 13. यह लगता एक बार यदि, पल भर को उसको पा जाती, जी से लगा प्यार से सर, सहल-सहला उसे समझाती कड़बक पुत्र वियोग कवित 14 / 40 14. फिर भी कोई न कर सका, छीन ही गया खिलौना मेरा, मैं असहाय विवश बैठी ही रही, उठ गया छौना मेरा पुत्र वियोग कड़बक कवित 15 / 40 15. चाँद जइस जग विधि औतारा दीन्ह कलंक कीन्ही उजियारा कड़बक पुत्र वियोग सिपाही की माँ 16 / 40 16. तड़प रहे है विकल प्राण ये मुझको पल भर शांति नहीं है, वह खोया धन पा न सकूँगी, इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है उषा अधिनायक पुत्र वियोग 17 / 40 17. थपकी दे दे जिसे सुलाया, जिसके लिए लोरियाँ गाई जिसके मुख पर जरा मलिनता, देख आंख में रात बिताई पुत्र वियोग गांव का घर हार जीत 18 / 40 18. पत्नी याद दिलाएगी, जैसे समझाएगी बिटिया को , बाल्टी सामने कुएं में लगी लोहे की घिरी। छते की काड़ी - ठंडी और घमेला, हँसिया चाकू और भिलाई बलाडिला जगह-जगह लोहे की टीले | कड़बक प्यारे नन्हे बेटे को अधिनायक 19 / 40 19. लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिन सी, रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को अधिनायक सूरदास के पद कवित 20 / 40 20. एक नैन कवि मुहमद गुनी सो विमोहा जेइ कवि सुनि कड़बक पुत्र वियोग हार जीत 21 / 40 21. कौन-कौन है जन -गण -मन अधिनायक वह महाबली, डरा हुआ मन बेमन जिसका, बाजा रोज़ बजाता है | अधिनायक पुत्र -वियोग गाँव का घर 22 / 40 22. जागिए, ब्रजराज कुंवर, कँवल-कुसुम फूले | कुमुद वृंद संकुचित भए, भृंग लता भूले | सूर के पद तुलसी के पद अधिनायक 23 / 40 23. दावा द्रुम -दंड पर चीता मृग-झुण्ड पर भूषण बितुंड पर जैसे मृगराज है | अधिनायक कवित छप्पय 24 / 40 24. विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रावननि धरै, सुर कवित सुनि कौन कवि जो नहीं शिरचालन करै अधिनायक छप्पय कवित 25 / 40 25. प्रतिभट कटक कटीले केते काटि, कालिका सी किलकी कलेउ देति काल को कवित छप्पय अधिनायक 26 / 40 26. तुमुल कोलाहल कलह में, मैं ह्रदय की बात रे मन | विकल होकर नित्य चंचल, खोजती जब नींद के पल, चेतना थक सी रही तब, मैं मलय की बात रे मन पुत्र - वियोग तुमुल कोलाहल गांव का घर 27 / 40 27. चाहे जिस देश प्रति पूर कर हरे, जन-जन का चेहरा एक एशिया की, यूरोप की, अमेरिका की, गलियों में धूप एक जन जन का चेहरा गांव का घर पुत्र - वियोग 28 / 40 28. इसी तरह घर भर मिल कर धीरे-धीरे सोच सोचकर एक साथ ढूढेंगे कहां- कहाँ लोहा है - अधिनायक पुत्र वियोग प्यारे नन्हे बेटे को 29 / 40 29. दीन, सब अंगहीन, छीन, मलीन, अघि अघाई | नाम ले भरै उदर एक प्रभु- दासी दास कहाइ || सूरदास के पद तुलसीदास के पद गांव का घर 30 / 40 30. पवन की प्राचीर में रुक, जला जीवन जा रहा इस झुलसते विश्व- तन की, मैं कुसुम रितू रात रे मन तुमुल कोलाहल कलह कड़बक अधिनायक 31 / 40 31. मखमल टमटम बल्लम तुरही, पगडी छत्र चॅवर के साथ तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर, जय-जय कौन कराता है | सिपाही की माँ अधिनायक गांव का घर 32 / 40 32. चिर विषा विलीन मन की, इस व्यथा के तिमिर वन की, मैं उषा सी ज्योति रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन तुमुल कोलाहल कलह छप्पय प्यारे नन्हे बेटे को 33 / 40 33. नाम लै भरे उदर एक प्रभु - दासी दास कहाई सूरदास के पद तुलसीदास के पद गांव का घर 34 / 40 34. की जैसे गिर गया हो गजदंतो को गंवाकर कोई हाथी सूरदास के पद अधिनायक गांव का घर 35 / 40 35. जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे है जिन किनके लिए आया है ? हार -जीत गांव का घर कड़बक 36 / 40 36. आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखी नाही भनी, कबीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रम षट दर्शनी छप्पय कवित अधिनायक 37 / 40 37. भक्ति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए, योग व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए | अधिनायक छप्पय कवित 38 / 40 38. नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो | उषा कवित छप्पय 39 / 40 39. प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका | उषा कवित छप्पय 40 / 40 40. इस घटना से उस घटना तक कि हर वो आदमी जो मेहनतकश लोहा है | प्यारे नन्हे बेटे को गॉव का घर तुमुल कोलाहल कलह Your score is 0% Restart quiz ACE