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बातचीत 

‘बातचीत’ शीर्षक एक प्रसिद्ध ललित निबंध है। इस निबंध के निबंधकार बालकृष्ण भट्ट जी है। वे आधुनिक काल के भारतेंदू युग के प्रमुख निबंधकार है। इस निबंध में लेखक ने वाक् शक्ति के बारे में बताया है। वे कहते हैं कि बोलने की शक्ति एक ईश्वर का वरदान है। बातचीत के बिना सारा संसार गुगा और मुकबधिर हो जाता। बातचीत में वक्ता को स्पीच की तरह नाज-नखरा जाहिर करने का मौका नही दिया जाता है। जिस प्रकार से आदमी को जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाना-पीना, घूमना-फिरना, हँसी-मजाक की जरूरत होती है, वैसे ही बातचीत भी जीवन के लिए आवश्यक होता है। इससे मन हल्का और स्वच्छ हो जाता है, और हृदय से सारे मवाद निकल जाते हैं। एडीसन के अनुसार दो लोंगों में असल बातचीत, तीन लोगों के बीच की बातचीत अंगूठी में जुड़ी नग जैसी होती है। चार लोंगो के बीच फार्मलिटी और चार से अधिक में राम रमौउल होती है। बेन जॉनसन के अनुसार बोलने से ही मनुष्य का साक्षात्कार होता है। मनुष्य के गुण-दोष का पता चलता है। इस निबंध में लेखक ने बातचीत के प्रकार को भी बताया है। लेखक कहते है कि, यूरोप के लोगों में बातचीत करने की अच्छी शैली होती है जिसे आर्ट आफ कनवरसेशन कहते है। इनके प्रसंग को सुन के कान को अत्यंत सुख और हृदय को सुकून मिलता है। इसे सुहृद गोष्ठी भी कहते है। अंतत बालकृष्ण भट्टट कहते है कि लोगों को अपने अंदर ऐसी शक्ति पैदा करनी चाहिए जिससे वे स्वंय से बातचीत कर सके और बातचीत का यही सबसे उतम तरीका है।

उसने कहा था 

‘उसने कहा था ‘ शीर्षक कहानी चंद्रधर शर्मा गुलेरी के द्वारा लिखी गई एक अमर कहानी है। यह एक बहुत ही मार्मिक कहानी है, जिसकी शुरूआत अमृतसर के बाजार से शुरू होती है। इस कहानी में 12 साल का एक लड़का, 8 साल की एक लड़की को तांगे के नीचे आने से बचाता है। लड़का और लड़की के बीच प्रेम हो जाता है। लेकिन लड़की की शादी दुसरे व्यक्ति से हो जाती है, तो लड़का बहुत ही उदास हो जाता है। 

                  25 साल के बाद वही लड़का सेना में भर्ती होता है जिसका नाम लहना सिंह होता है, वह अंग्रेजों की तरफ से फ्रांस में लड़ने जाता है। वही पर सेना में उसे सूबेदार हजारा सिंह, वजीरा सिंह और बोधा सिंह के बीच दोस्ती हो जाती है। एक बार सूबेदार हजारा सिंह के बुलाने पर लहना सिंह सुबेदार के घर आता है, तो सुबेदारनी लहना सिंह को पहचान लेती है और उसे बुलाकर अपने पति और बेटा की युद्ध में रक्षा करने की वचन लेती है। युद्ध के मैदान में लहना सिंह बोधा सिंह और सुबेदार हजारा सिंह की युद्ध में रक्षा करता है, अंत में युद्ध के दौरान लहना सिंह को जांघ में गोली लग जाती है तो लहना सिंह अपनी जान की परवाह ना करते हुए वह सुबेदार और उसके बेटे को घायल वाले सैनिक के गाड़ी में हॉस्पिटल पहुचवा कर उनकी जान बचा देता है। । इस प्रकार से लहना सिंह सुबेदारनी को दिये गये वचन की लाज रख लेता है। अंततः लहना सिंह की युद्ध में मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार से यह कहानी निश्छल प्यार, प्रेम, देशभक्ति की भावना को दर्शाता है। 

अर्धनारीश्वर 

‘अर्धनारीश्वर’ रामधारी सिंह दिनकर जी के द्वारा लिखा गया एक निबंध है। इस निबंध में लेखक ने समाज में स्त्री और पुरुष के बारे में बताया है। उन्होंने अपने इस निबंध में अलग अगल प्रसिध व्यक्तियों के द्वारा कहे गये कथन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते है। दिनकर जी कहते है, कि नारी पुरुष गुणो का दृष्टि से समान है। एक का गुण दूसरे का दोष नही है प्रत्येक नर के अंदर नारी का गुण होता है, परंतु पुरुष स्त्रैण कहे जाने की डर से दबाये रखता है। अगर नारी मे दया, ममता, औदार्य, सेवा आदि जैसे गुण आ जाए तो उनका व्यक्तित्व धूमिल नही होता बल्कि और अधिक निखर जाता है। इसी तरह प्रत्येक स्त्री में पुरुष का तत्व होता है, परंतु सिर्फ उसे कोमल शरीर वाली, पुरुष को आनंद देने वाली रचना, घर के चार दीवारो में रहने वाली मानसिकता उसे अलग बनाती है। और इसलिए इसे दूर्बल कहे जाने लगता है। समय बीतने के साथ ही पुरुषो ने महिलाओं के अधिकार को दबाता गया पुरुष और स्त्री के बीच अधिकार और हक का बँटवारा हो गया। महिलाओ को सिर्फ सुख का साधन समझा जाने लगा है। दिनकर जी स्त्री के प्रति टैगोर, प्रसाद और प्रेमचंद्र जैसे कवियो के विचार से असहमत होते है। उनकी नारी के प्रति कोमलतावादी, रूमानी दृष्टि का विरोध प्रकट करते है।

रोज 

‘रोज’ अज्ञेय जी के द्वारा लिखी गई एक बहुचर्चित कहानी है। अज्ञेय जी हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक और पत्रकार थे इस कहानी में लेखक मध्यमवर्ग भारतीय समाज में घरेलु स्त्री के जीवन और मनोदशा का वर्णन करते है। इस कहानी में मालती और लेखक एक दुसरे के दूर के भाई-बहन होते है। वे दोनों साथ-साथ पढ़ते, लिखते और खेलते हुए जीवन को व्यतीत करते है। मालती बचपन में काफी चंचल और खुशमिजाज होती है। उसकी शादी एक डॉ० से हो जाती है जो पहाडी क्षेत्र के एक अस्पताल में काम करते हैं। शादी के बाद मालती का हालात बिल्कुल बदल जाता है। वह हमेशा अपने घरेलू काम में सुबह से रात तक व्यस्त रहती है। उसका जीवन पुरा यंत्रवत हो जाता है। मालती के विवाह के करीब चार साल बाद लेखक उससे मिलने उसके घर जाते है। लेखक को उसके घर का वातावरण बिल्कुल बोझिल और उदास लगता है। मालती अपने ससुराल में सुबह से रात तक अपने काम में लगी मशीन की तरह लगी रहती है। उसके जीवन में कोई आनंद, खुशी, उत्साह और उमं नही होता है। इस प्रकार लेखक इस कहानी में एक मध्यवर्गीय भारतीय समाज में रह रही घरेलू स्त्री का वर्णन करते है।

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