सप्रसंग व्याख्या करें
Hello Friends ! मैं Amar Sir इस Blog में मैंने Bihar Board Exam 2011 से 2021 तक के हिन्दी सप्रसंग व्याख्या करें का एक जबरदस्त Collection है, जिसे पढ़कर आप निश्चित रूप से अच्छा से अच्छा Marks ला सकते है
सप्रसंग व्याख्या करें
1. धनि सो पुरुख जस कीरति
फूल मरै पर मरै न बासु
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “कड़बक ” शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता ” “पदमावत ” महाकाव्य में संकलित है। इस कविता के कवि मलिक मोहम्मद जायसी जी है। वे भक्तिकाल के प्रेममार्गी शाखा के एक महान सूफी कवि थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कवियत्री मलिक मोहम्मद जायसी जी कहते है, वैसे पुरुष धन्य होते है जिनका समाज में मान मर्यादा और इज़्ज़त होता है। वह कहते है जिस प्रकार से फूल मुरझा जाते है लेकिन उसका सुगन्ध नहीं मरता है। ठीक उसी प्रकार से गुणवान पुरुष मर जाते है लेकिन उनका नाम और कृति इस संसार में जीवित रहता है।
2. जहाँ मरू ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती
उन्ही जीवन घाटियों को,
मैं सरस जलजात रे मन
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग -2 के “तुमुल कोलाहल कलह में ” शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता “कामायनी ” महाकाव्य में संकलित है। इस कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी है। वह छायावादी युग के एक प्रमुख कवि के साथ -साथ साहित्यकार, निबंधकार, कहानीकार थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि जयशंकर प्रसाद जी ने श्रद्धा और मनु के बीच की बात को दर्शाते है। वे कहते है कि जिस प्रकार से चातकी एक बूँद वर्षा के पानी के लिए तरसती है, ठीक उसी प्रकार से जब मानव जीवन कष्ट की अग्नि में मरुस्थल की तरह धधकता है। तो आनंदरूपी वर्षा मनरूपी चातकी को सुख प्रदान करती है। वह मानव को सुख प्रदान करती है।
3. एक नैन जस दरपन और तेहि निरमल भाउ
सब रूपवंत गहि मुख जोवहि कइ चाउ
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “कड़बक ” शीर्षक कविता से ली गई है। यह कविता “पदमावत ” महाकाव्य में संकलित है। इस कविता के कवि मलिक मुहमद जायसी जी है जायसी जी भक्तिकाल के एक महान सूफी कवि थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि मलिक मोहम्मद जायसी जी ने अपने बारे में बताते है।वह कहते है की उनका एक आँख दर्पण के सामान स्वच्छ और निर्मल है। और इसी गुण के कारण बड़े बड़े रूपवान लोग उनके पैर को पकड़कर बैठते है और कुछ पाने की इच्छा रखते है।
4. जो रस नंद जसोदा बिलसत
सो नहि तिहो भुवनियां
भोजन करि नन्द आचमन लीन्हौ
माँगत सुर जूठनियाँ
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है ।यह कविता “सूरसागर ” का एक अंश है । इस कविता के कवि सूरदास जी है सूरदास जी भक्तिकाल के कृष्णमार्गी शाखा के एक प्रसिद्ध कवि थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कविसूरदास जी ने कृष्ण और यशोदा के बीच वात्स्ल्य भाव का वर्णन करते हुए कहते है कृष्ण नंद बाबा के गोद में बैठकर भोजन करते है वह खुद भी खाते है और नंद बाबा को भी खिलाते है इस दृश्य को देखकर जो खुशी यशोदा मैया को मिल रही है उतनी खुशी तीनो लोक में किसी और को नहीं मिल रही है
5 . चाँद जइस जग विधि औतारा
दीन्ह कलंक कीन्ह उजियारा
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद” शीर्षक कविता से ली गई है।यह कविता “सूरसागर ” का एक अंश है। इस कविता के कवि सूरदास जी है सूरदास जी भक्तिकाल के एक प्रसिद्ध कवि थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि मलिक मोहम्मद जायसी जी ने अपने बारे में परिचय देते हुए कहते है।ईश्वर ने उन्हें चाँद जैसा बनाकर इस धरती पर उतारा है, जिस प्रकार से चाँद में दाग है, फिर भी वह पुरे संसार को अपने प्रकाश से प्रकाशित करता है ठीक उसी प्रकार से कवी में भी दाग है और वह भी अपने ज्ञान के प्रकाश से संसार को प्रकाशित करते है।
6 . एक नैन कवि मुहमद गुनी
सो बिमोहा जेइ कवि सुनी
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “सूरसागर ” का एक अंश है इस कविता के कवि 11 सूरदास जी है सूरदास जी भक्तिकाल के प्रेममार्गी शाखा के एक प्रसिद्ध सूफी कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि मलिक मोहम्मद जायसी जी ने अपने बारे में परिचय देते हुए कहते है वे एक आँख के होते गए भी इतने गुणवान है कि जो उनकी कविता को पढ़ता है वह उनकी कविता पर मोहित हो जाता है
7 . जागिए ब्रजराज कुँवर कँवल कुसुम फूले
कुमुद वृंद संकुचित भए, भृंग लता भूले
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद-सूरदास ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “सूरसागर ” से संकलित है इस कविता के कवि सूरदास जी है वे भक्तिकाल के कृष्णंमार्गी शाखा के एक प्रसिद्ध कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कविसूरदास जी ने कृष्ण और यशोदा के बीच वात्स्ल्य भाव का वर्णन करते हुए कहते है यशोदा माँ कृष्ण को उठाते हुए कहते है हे ब्रज के राजकुमार कमल के फूल खिल चुके है कुमुदनी की पंखुरियाँ सिकुड़ चुकी है भौंरे लता में छुप गए है यहाँ पर यशोदा माँ कृष्ण को भोर होने पर उठने के लिए कहती है
Amar Sir || The Director of ACE |