सप्रसंग व्याख्या करें
Hello Friends ! मैं Amar Sir इस Blog में मैंने Bihar Board Exam 2011 से 2022 तक के हिन्दी सप्रसंग व्याख्या करें का एक जबरदस्त Collection है, जिसे पढ़कर आप निश्चित रूप से अच्छा से अच्छा Marks ला सकते है
सप्रसंग व्याख्या करें
1. फिर भी रोता ही रहता है
नही मानता है मन मेरा
बड़ा जटिल नीरस लगता है
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “पुत्र वियोग” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “मुकुल” का एक अंश है इस कविता के कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी है वह राष्ट्रिय भावधारा की प्रसिद्ध कवियत्री थी
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक व्यक्त करती है वह जानती है कि उनका बेटा वापस लौट कर नहीं आ सकता है फिर भी वह उसकी याद में हमेशा रोती रहती है उनका मन नहीं मानता है की उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है पुत्र के बिना उनका जीवन जटिल और नीरस हो गया है
2. पूरब पश्चिम से आते है
नंगे बुचे नर कंकाल सिंहासन पर बैठा,
उनके तमगे कौन लगाते है
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “अधिनायक” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “आत्महत्या के विरूद्ध” का एक अंश है इस कविता के कवि “रघुवीर सहाय” जी है वह आधुनिक काल के प्रसिद्ध कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से “रघुवीर सहाय” जी आज के सत्ताधारी वर्ग के राजनेताओं पर व्यंग करते है वह कहते है कि हमारे राजनेता का काम केवल भाषण देना और पुरस्कार बाँटना ही रह गया है वह जनता के प्रतिनिधि होकर भी जनता से दूर रहते है और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए तरह तरह के तिकड़म किया करते है वे पूरब पश्चिम के नंगे बुचे नरकंकाल को सिंहासन पर बैठाकर उन्हें पुरस्कृत किया करते है ताकि विदेशों में उनका नाम हो सके
3. आज दिशाएँ भी हँसती है
है उल्लास विश्व पर छाया
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “पुत्र वियोग” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “मुकुल” का एक अंश है इस कविता के कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी है वह राष्ट्रिय भावधारा की प्रसिद्ध कवियत्री थी
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी अपने पुत्र की असमय मृत्यु पर शोक व्यक्त करती है वह कहती है आज सारा चारो ओर खुशहाली है और पूरे विश्व मे उल्लास छाया है लेकिन पूजा पाठ मिन्नतें करने के बावजूद भी उनका बेटा वापस लौट कर नहीं आ सकता है फिर भी वह उसकी याद में हमेशा रोती रहती है
4. जादू टूटता है अब सूर्योदय हो रहा है
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “उषा ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “टूटी हुई बिखरी हुई ” कविता में संकलित है इस कविता के कवि शमशेर बहादुर सिंह जी है वे आधुनिक काल के प्रयोगवादी शैली के एक महान कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि शमशेर बहादुर सिंह जी सुबह के आसमान का वर्णन करते है वे कहते है की सुबह के समय का आसमान की सुंदरता का वर्णन करते है वे कहते है सुबह का आसमान नीले शंख जैसा लगता है फिर कभी राख से लीपा हुआ चौका के समान लगता है सुबह का आसमान बहुत ही सुन्दर लगता है लेकिन इसकी सुंदरता का जादू टूटता है जब सूर्य का उदय होता है
5. धनि सो पुरुख जस कीरति
फूल मरै पर मरै न बासु
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “कड़बक ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “पदमावत ” महाकाव्य में संकलित है इस कविता के कवि मलिक मोहम्मद जायसी जी है वे भक्तिकाल के एक महान सूफी कवी थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कवियत्री मलिक मोहम्मद जायसी जी कहते है वैसे पुरुष धन्य होते है जिनका समाज में मान मर्यादा और इज़्ज़त होता है वह कहते है जिस प्रकार से फूल मुरझा जाते है लेकिन उसका सुगन्ध नहीं मरता है ठीक उसी प्रकार से गुणवान पुरुष मर जाते है लेकिन उनका नाम और कृति इस संसार में जीवित रहता है
6. शीत न लग जाय इस भय से
नहीं गोद से जिसे उतारा
छोड़ काम दौड़ कर आई
माँ कहकर जिस समय पुकारा
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “पुत्र वियोग” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “मुकुल” कविता में संकलित है इस कविता के कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी है वह राष्ट्रिय भावधारा की प्रसिद्ध कवियत्री थी
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी अपने पुत्र की असमय मृत्यु पर शोक व्यक्त करती है वह कहती है वह अपने बेटे को इतना मानती थी की उसे गोद से नीचे नहीं उतारती ताकि उसे ठण्ड न लग जाये जब भी उनका बेटा माँ कहकर पुकारता वह सारा काम छोड़कर उसके पास आ जाती थी
7. जहाँ मरू ज्वाला धधकती
चातकी कन को तरसती
उन्ही जीवन घाटियों को
मैं सरस जलजात रे मन
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “तुमुल कोलाहल कलह में ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “कामायनी ” महाकाव्य में संकलित है इस कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी है वह छायावादी युग के एक प्रमुख कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि जयशंकर प्रसाद जी कहते है जिस प्रकार से चातकी एक बूँद वर्षा के पानी के लिए तरसती है ठीक उसी प्रकार से जब मानव जीवन कष्ट की अग्नि में मरुस्थल की तरह धधकता है आनंदरूपी वर्षा मनरूपी चातकी को सुख प्रदान करती है मानव को सुख प्रदान करती है
8. राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत भाग्य विधाता है
फटा सुथना पहने जिसका
गुण हरचरना गाता है
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “अधिनायक ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “आत्महत्या के विरुद्ध ” कविता में संकलित है इस कविता के कवि रघुवीर सहाय जी है वे समकालीन हिंदी कविता के एक संवेदनशील कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि रघुवीर सहाय ने आजकल के राजनेता के बारे में व्यंग करते है वे कहते है कि पता नही हमारे राष्टगीत में भारत भाग्य विधाता कौन है जिसका गुणगान फटा सुथना पहने हरचरना गाता है यहाँ पर सत्ताधारी वर्ग के लोगों को भाग्य विधाता कहा गया है जिसका गुण यहाँ के गरीब लोग गाते है
9. पंचायती राज में जैसे खो
गए पंच परमेश्वर, बिजली
बत्ती आ गयी कब की
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “गाँव का घर ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “संशयात्मा ” का एक अंश है इस कविता के कवि ज्ञानेंद्रपति जी है वे आधुनिक काल के एक प्रमुख कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ज्ञानेंद्रपति कहते है की गाँव का पुराना घर अपना गाँव खो चुका है नई व्यवस्था में पंचायती राज में पंच परमेश्वर खो गए है पुरानी ग्रामीण व्यवस्था में गावों के विवाद को निपटाने में पंच परमेश्वर तथा पंचायत की भूमिका का वर्णन करते है पहले पंच में परमेश्वर का वास होता था और वह न्याय करते थे जबकि आज के पंचायती राज व्यवस्था व्याप्त भ्रष्टाचार अनैतिकता और अराजकता आ गया है गांव में बिजली आ गयी है लेकिन ज़्यदातर बिजली कटी रहती है
10. बड़ा कठिन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “पुत्र वियोग” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “मुकुल” का एक अंश है इस कविता के कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी है वह राष्ट्रिय भावधारा की प्रसिद्ध कवियत्री थी
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी अपने पुत्र की असमय मृत्यु पर शोक व्यक्त करती है वह कहती है एक माँ के लिए जीना बहुत कठिन हो जाता है अगर उसके पुत्र की मृत्यु असमय हो जाती है वह अपने मन को समझा नहीं पाती है उसका बेटा इस दुनिया में नहीं है
11. एक नैन जस दरपन और तेहि निरमल भाउ
सब रूपवंत गहि मुख जोवहि कइ चाउ
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “कड़बक ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “पदमावत ” महाकाव्य में संकलित है इस कविता के कवि मलिक मुहमद जायसी जी है जायसी जी भक्तिकाल के एक महान सूफी कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि मलिक मोहम्मद जायसी जी ने अपने बारे में बताते है वह कहते है की उनका एक आँख दर्पण के सामान स्वच्छ और निर्मल है और इसी गुण के कारण बड़े बड़े रूपवान लोग उनके पैर को पकड़कर बैठते है और कुछ पाने की इच्छा रखते है
12. जो रस नंद जसोदा बिलसत
सो नहि तिहुँ भुवानियां
भोजन करि नन्द आचमन लीन्हौ
माँगत सुर जुठनियाँ
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है यह कविता “सूरसागर ” का एक अंश है इस कविता के कवि सूरदास जी है सूरदास जी भक्तिकाल के एक प्रसिद्ध कवि थे
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कविसूरदास जी ने कृष्ण और यशोदा के बीच वात्स्ल्य भाव का वर्णन करते हुए कहते है कृष्ण नंद बाबा के गोद में बैठकर भोजन करते है वह खुद भी खाते है और नंद बाबा को भी खिलाते है इस दृश्य को देखकर जो खुशी यशोदा मैया को मिल रही है उतनी खुशी तीनो लोक में किसी और को नहीं मिल रही है
13. यह लगता है एक बार यदि
पल भर को उसको पा जाती
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
14. फिर भी कोई कुछ न कर सका
छिन ही गया खिलौना मेरा
मैं असहाय विवश बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
15. चाँद जइस जग बिधि औतारा
दीन्ह कलंक कीन्ह उजियारा
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
16. तड़प रहे है विकल प्राण ये
मुझको पल भर शांति नहीं है
वह खोया धन पा न सकूँगी
इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
17. थपकी दे दे जिसे सुलाया
जिसके लिए लोरियाँ गाई
जिसके मुख पर जरा मलिनता
देख आँखों में रात बिताई
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
18. पत्नी याद दिलाएगी
जैसे समझाएगी बिटिया को
बाल्टी सामने कुएँ में लगी लोहे की घिरी
छत्ते की काडी डंडी और घमेला
हँसिया चाकू और
भिलाई बलाडिला जगह जगह लोहे की टीले
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
19. लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिन सी
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
20. एक नैन कवि मुहमद गुनी
सो बिमोहा जेइ कवि सुनी
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
21. कौन कौन है जन गण मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज़ बजाता है
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
22. जागिए, ब्रजराज कुँवर, कँवल कुसुम फुले
कुमुद वृन्द संकुचित भए, भृंग लता भूले
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत दिगंत भाग – 2 के “पद ” शीर्षक कविता से ली गई है
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