पाठ – 1 | कड़बक | जायसी
पाठ -1 – कड़बक – मलिक मोहमद जायसी
कवि – मलिक् मोहमद जायसी
जन्म – 1492
मृत्यु – 1548
स्थान – जायस, कब्र, अमेठी उत्तर प्रदेश
माता – कृष्णावती
पिता – मलिक् शेख ममरेज
गुरु – शेख मोहिदी और सैयद अशरफ जहाँगीर
वृति – किसान, फकीरी,
रचनाएँ – पदमावत, अखरावट, आखरी कलाम, चित्ररेखा, कहरनामा, चंपावत, होलीनामा, इतरावत,
Highlights
1. बाई आँख और कान से वंचित
2. मृदुभाषी, मनस्वी और सूफी संत
3. अवधी भाषा में रचना
4. प्रेममार्गी शाखा के कवि
5. भक्तिकाल के कवि
6. प्रेम की पीर के कवि
7. चित्तौड़ के नरेश रत्नसेन
8. सिंहल द्वीप की राजकुमारी
9. दिल्ली के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी
10. सुग्गा
11. आचार्य रामचन्द्रशुक्ल,डॉ माताप्रसाद गुप्त के द्वारा जायसी ग्रन्थावली संपादित
12. चाँद जैसा बनाकर
13. शुक्रतारे की तरह महत्वपूर्ण
14. आम में मंजर
15. समुन्द्र का पानी खारा
16. सोना को गलाया नहीं जाय
17. आँखों के आँसुओ से सींचा
18. ख़ून के लई से जोड़ा गया
19. गुणवान पुरुष मुरझाये फूल के समान
20.
Lyric || Lesson – 1 || कड़बक
कड़बक
एक नैन कवि मुहम्मद गुनी सोई बिमोहा जेई कवि सुनी
चाँद जईस जग विधि औतारा , दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा
जग सूझा एकड़ नैनाहा , उवा ससूक अस नखतन्ह महा
जौ लहि अंबहि डाभ न होई , तौ लहि सुगंध बसाई न सोई
जौ सुमेरु तिरसूल बिनासा , भा कंचनगिरि आग अकासा
जौ लहि घरी कलंक न परा , कांच होई नहीं कंचन करा
एक नैन जस दरपन औ तेहि निरमल भाउ ,
सब रूपवंत गहि मुख जोवहि कड़ चाउ
मुहम्मद कवि यह जोरि सुनावा , सुना जो प्रेम गा पावा
जोरी लाड़ रकत कै लेई , गाढ़ी प्रीति नयनन्ह जल भेई
औ मन जानि कबित अस कीन्हा , मकु यह रहै जगत मह चीन्हा
कहाँ अल्लाउद्दीन सुल्तान , कहँ राघौ जेई कीन्ह बखान
कह सुरूप पद्मावती रानी कोई न रहा, जग रही कहानी
धानी सोई जस कीरति जासू फूल मरै न बासू
केई न जगत जस बेंचा , केइ न लीन्ह जस मोल
जो यह पढ़ै कहानी , हम संवरै दुइ बोल
Word Power
1. गुनी – गुणवान
2. सोई – वही
3. जइस – जैसा
4. जेई – जिसने
5. बिधि – ईश्वर
6. औतारा – अवतार
7. नखतन्ह माहाँ – नक्षत्रों के बीच
About the Poet
Amar’s Classes for English | 9570589502
Hindi Explanation
1) एक नैन कवि मुहम्मद गुनी सोई बिमोहा जेई कवि सुनी
प्रस्तुत पंकितयाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि एक आँख के होते हुए भी वे गुणवान है उनकी वाणी ऐसी है की जो भी उनकी काव्य को सुनता है वह मोहित हो जाता है
जग सूझा एकड़ नैनाहा , उवा ससूक अस नखतन्ह महा
प्रस्तुत पंकितयाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि ईश्वर ने जिस प्रकार से चन्द्रमा में दाग है फिर भी वह संसार को प्रकाशित करता है ठीक उसी प्रकार से कवि में अवगुण होते हुए भी वह अपनी काव्य की प्रकाश को पुरे संसार में फैला रहे है
3) जौ लहि अंबहि डाभ न होई , तौ लहि सुगंध बसाई न सोई
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि जब तक आम में नुकीली डाभ यानि मंजरी नहीं होती तबतक उसमे सुंगध नहीं आती है
4) जौ सुमेरु तिरसूल बिनासा , भा कंचनगिरि आग अकासा
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि जबतक पर्वत को त्रिशुल से नष्ट नहीं किया जाता तबतक वो सोने का नहीं होता है
5) जौ लहि घरी कलंक न परा , कांच होई नहीं कंचन करा
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि जबतक घरिया में सोने को गलाया नहीं जाता, तबतक वह कच्चा धातु सोना नहीं होता
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि उनकी एक आँख दर्पण की तरह निर्मल और स्वच्छ भाव वाले है उनकी इसी गुण के कारण बड़े बड़े रूपवान लोग उनके चरण को पकड़ कर कुछ पाने की इच्छा रखते है
जोरी लाड़ रकत कै लेई , गाढ़ी प्रीति नयनन्ह जल भेई
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि वे इस काव्य की रचना कर के जब लोगों को सुनाते तो उन्हें भी प्रेम की पीड़ा का अनुभव करते हैं कवि इस काव्य को रक्त की लेई से जोड़ा है और आँखों से आँसुओ से भीगाया है
कहाँ अल्लाउद्दीन सुल्तान , कहँ राघौ जेई कीन्ह बखान
कह सुरूप पद्मावती रानी कोई न रहा, जग रही कहानी
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत से लिया गया है ा इस पंक्ति में कवि जायसी कहते है कि मैंने इस काव्य की रचना यह सोचकर किया ताकि मेरे ना रहने पर भी इस संसार में मेरी आखरी निशानी बानी रही अभी ना ही रतनसेन है, ना ही रूपवती पद्मावत, ना ही बुद्धिमान सुआ और ना ही अल्लाउद्दीन है फिर भी इनका यश कहानी के रूप आज भी है
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिससे कवि कहते है की वह पुरुष धन्य है जिसकी कीति और प्रतिष्ठा इस संसार में है उसी तरह रह जाती है जिस प्रकार पुरुष के मुरझा जाने पर भी उसका सुगंध रह जाता है
जो यह पढ़ै कहानी , हम संवरै दुइ बोल
प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मो0 जायसी के द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिससे कवि कहते है की इस संसार में यश न हो तो किसी ने बेचा है और न ही किसी ने ख़रीदा है कवी कहते है ी जो मेरे केलेज़ के खून से रचित कहानी को पढ़ेगा वह हमे दो शब्दो में याद रखेगा
Multiple Choice Questions (MCQs)
1. ‘कडबक’ शीषर्क कविता किसने लिखी है?
A. मालिक मुहम्मद जायसी
B. तुलसीदास
C. सूरदास
D. कबीरदास
2. इनमे से कौन प्रेम पीर के कवि है ?
A. जायसी
B. नाभादास
C. सूरदास
3. ‘पद्मावत’ के कवि कौन है?
A. नाभादास
B. मालिक मुहम्मद जायसी
C. नंददास
D. इनमे से कोई नहीं
4. कवि मालिक मुहम्मद जायसी का जन्म कब हुआ था ?
A. 15 वी शदी 1492
B. 15 वी शदी 1480
C. 15 वी शदी 1496
D. 15 वी शदी 1450
5. मालिक मुहम्मद जायसी का निवास स्थान कहा था ?
A. जायस, क्रब अमेठी, लाहौर
B. जायस, क्रब अमेठी, हरियाणा
C. जायस, क्रब अमेठी, मध्य प्रदेश
D. जायस, क्रब अमेठी, उत्तर प्रदेश
6. कवी मलिक मुहम्मद जायसी के पिता का नाम क्या था?
A. मलिक शेख ममरेज
B. मलिक ममरेज शेख
C. शेख मलिक ममरेज
D. राजे मलिक ममरेज
7. कवि मलिक मुहम्मद जायसी के गुरु का क्या नाम था?
A. सूफी संत अशरफ और सैयद जहांगीर अशरफ
B. सूफी संत मोहमिदी और सैयद अशरफ जहांगीर
C. सूफी संत मोहमिदी शेख और जहांगीर सैयद
D. सूफी संत मोहमिदी शेख और सैयद
8. कड़बक कहा से लिया गया है?
A. अखरावट
B. पद्मावत
C. आखिरी सलाम
D. अखरावट
9. सुमेरु का पर्यावाची क्या है ?
A. नीलगिरि
B. कंचनगिरी
C. हिमालय
D. मलयगिरी
10. जायसी रचित पद्मावत की भाषा क्या है
A. अवधि
B. ब्रज
C. खड़ीबोली
D. मैथिली
11. जायसी किस परम्परा के कवि है
A. सगुण कृष्णभक्ति परम्परा
B. प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा
C. सगुण राम भक्ति परम्परा
D. संस्कृत काव्य परम्परा
12. जायसी ने अपनी आँख की उपमा किससे की है
A. कमल
B. कुमुद
C. सरोवर
D. दर्पण
13. जायसी किस शाखा के कवि है
A. प्रेममार्ग
B. राममार्ग
C. ज्ञानमार्ग
D. कृष्णमार्ग
14. जायसी का जन्म 1492 में किस गाँव में हुआ था
A. अमेठी में
B. जायस में
C. गुजरात में
D. बंगाल में
15. निम्लिखित में से कौन सी रचना जायसी की नहीं है
A. पद्मावत
B. अखरावट
C. कामायनी
D. चित्रलेखा
16. ” फूल मरै पै मरै ना बासु ” का क्या तात्पर्य है
A. फूल के मुरझाते ही सुंगध समाप्त हो जाता है
B. फूल क्षणिक है लेकिन उसका सुगंध शास्वत है
C. मनुष्य मर जाता है लेकिन उसका कर्म रहता है
17. जायसी कवियों में किस भांति महत्वपूर्ण है
A. चन्द्रमा की भांति
B. शुक्रतारे की भांति
C. सूर्य की भांति
D. शीशे की भांति
18. जायसी का काव्य किस प्रकार के गंभीर एवं व्यापक है
A.नदी की भांति
B. सरोवर की भांति
C. कुआँ की भांति
D. समुन्द्र की भांति
19. जायसी ने रत्नसेन और पद्मावत की कथा को किस प्रकार जोड़ा गया है
A. रक्त रूपी लेई से
B. भक्ति के द्वारा
C. अपने आंसुओ से
D. श्रद्धा से
20. पद्मावत कौन थी
A. सिंगापुर की राजकुमारी
B. जयपुर की राजकुमारी
C. सिंहल देश की राजकुमारी
D. रामपुर की राजकुमारी
21. जायसी के काव्य का मुख्य रस क्या है
A. श्रृंगार रस
B. रौद्र रस
C. वात्स्ल्य रस
D. भयानक रस
22. जायसी स्वंय को किस दोष से युक्त होने पर भी गुणवान मानते है
A. श्रृव्य दोष
B. नेत्र दोष
C. जिहवा दोष
D. अंग दोष
23. जायसी की रचना भाषा क्या है
A. मैथिली
B. ब्रजभाषा
C. अवधि
D. संस्कृत
24. तसव्वुफ का क्या अर्थ है
A. सूफी मत
B. साधु मत
C. आधुनिक मत
D. कोई नहीं
25. जायसी की वृत्ति क्या थी
A. आरम्भ में जायस में रहते हुए किसानी
B. बाद में शेष जीवन में फकीरी में
C. इनमे से सभी
QUESTIONS & ANSWER
कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से क्की है ?
कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है क्योंकि दर्पण स्वच्छ व निर्मल होता है, उसमें मनुष्य की वैसी ही प्रतिछाया दिखती है जैसा वह वास्तव में होता है। कवि स्वयं को दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल भावों से ओत-प्रोत मानता है। उसके हृदय में जरा-सा भी कृत्रिमता नहीं है। उसके इन निर्मल भावों के कारण ही बड़े-बड़े रूपवान लोग उसके चरण पकड़कर लालसा के साथ उसके मुख की ओर निहारते हैं।
पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या में तात्पर्य है ?
अपनी कविताओं में कवि जायसी ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।
जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम करता है। उसकी प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्त्तियों के सामने उनके एकाध-दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं।
कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव-त्रिशूल द्वारा नष्ट किये जाने पर सुमेरु पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों की संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही वह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है।यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है।
‘काँच’ शब्द की अर्थक्ता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की है। बिना घरिया में गलाए काँच असली स्वर्ण रूप को नहीं प्राप्त कर सकता है ठीक उसी प्रकार इस संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठमा नहीं प्राप्त हो सकती।
‘रकत कै लेई’ का क्या अर्थ है ?
कविवर जायसी कहते हैं कि कवि मुहम्मद ने अर्थात् मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। मैंने इस कथा को रक्त रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगोया है। यही सोचकर मैंने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है कि जगत में कदाचित, मेरी यही निशानी शेष बची रह जाएगी।
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