1. सच है मनुष्य जब तक बोलता नहीं उसका गुण दोष प्रकट नहीं होता
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य-पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “बातचीत” शीर्षक निबंध से ली गई है। निबंध के लेखक बालकृष्णभट्ट जी है। वे भारतेंदु युग के एक सफल पत्रकार, उपन्यासकार नाटककार और निबंधकार थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा लेखक बालकृष्ण भट्ट ने बातचीत के महत्व और शैली को बताया है। वह कहते है की बातचीत एक विशेष तरीका है, जिसके द्वारा लोग एक दूसरे से बातें करके आनंद उठाता है। जब व्यक्ति बोलता है, तो उसके गुण और दोष दोनों का पता चलता है जब मनुष्य आपस में बात करता है, तो वे एक दूसरे सामने अपने दिल को खोलते है। इस खुलेपन की बातें में वह किसी की शिकायत, किसी की अच्छाई, किसी की बुराई करते है जिसके कारण लोग एक दूसरे के गुण और अवगुण के बारे में पता चलता है ।
2.मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है, जन्म भर की घटनाएँ एक एक करके सामने आती है
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिंदी पाठ्य-पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “उसने कहा था” शीर्षक कहानी से ली गई है। इस कहानी के लेखक चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी है। वे द्विवेदी युग के एक सफल कथाकार, व्यंगकार और निबंधकार थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा लेखक चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी ने प्रथम विश्व युद्ध के एक दृश्य का वर्णन करते हैं। जिस दृश्य में लहना सिंह घायल हो जाता है, और वह वजीरा सिंह की गोद में लेटा हुआ पानी मांगता है। पानी पीने के बाद वह अपने अतितों के बारे में बात करता है। वहां पर सूबेदारनी के बारे में बात करता है उसके साथ बिताए हुए पल की बातें करता है।
3. जाड़ा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरने वालो को मुरब्बे नहीं मिला करते है ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिन्दी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के “उसने कहा था” शीर्षक कहानी से ली गई है। इस कहानी के कहानी कार चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी है। वे द्विवेही युग के महान रचनाकार है ।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने प्रथम विश्व युद्ध के एक दृश्य को बताया है। जहाँ पर लहना सिंह कार्यरत है। वजीरा, सिंह कहता है कि युद्ध के मैदान में अत्यधिक ठंड पड़ रही है जिसके कारण ऐसा लगता है मानो उसकी जान निकल जायेगी और इस स्थिति में इतने लोगो को निमोनिया हो रहा है उनके मरने के बाद दफनाने का भी जगह नहीं मिल रहा है। इसलिए वज़ीरा सिंह लहना सिंह से कहता है कि जाड़ा तो मौत के बराबर है और निमोनिया से मरने वालों को मुरब्बे नहीं मिला करते है।
4. अगर कोई डिमॉक्रेसी का दुश्मन है, तो वे लोग दुश्मन हैं जो जनता के शान्तिमय कार्यक्रमों में बाधा डालते हैं, उनकी गिरफ्तारियाँ करते हैं, उन पर लाठी चलाते हैं, गोलियाँ चलाते हैं।
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग -2 के “संपूर्ण क्रांति ” शीर्षक भाषण से ली गई है।इस भाषण के लेखक जयप्रकाश नारायण जी है। वे भारत के एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से जयप्रकाश नारायण जी इंदिरा गाँधी सरकार के विरुद्ध बातें करते है। उन्होंने यहाँ पर लोकतंत्र के दुश्मनों का वर्णन करते है। वह इंदिरा गाँधी सरकार की आलोचना करते हुए कहते हैं कि डेमोक्रेसी का अगर कोई दुश्मन है, तो वह इंदिरा गाँधी सरकार की प्रशासन और उनकी बड़े बड़े अफसर है। वे लोग जनता के शांतिमय कार्यक्रम में बाधा डालते है।उनकी प्रशासन जनता पर जनता पर लाठियाँ चलाते है, गोलियाँ चलाते है, उनकी गिरफ्तारियाँ करते है।
5. व्यक्ति से नहीं हमें तो नीतियों से झगड़ा है, सिद्धान्तों से झगड़ा है, कार्यों से झगड़ा है।
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग – 2 के “संपूर्ण क्रांति ” शीर्षक भाषण से ली गई है इस भाषण के लेखक जयप्रकाश नारायण जी है। वे भारत के एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से जयप्रकाश नारायण इंदिरा गाँधी सरकार के विरुद्ध बातें करते है। छात्र आंदोलन के समय जयप्रकाश नारायण जी के कुछ ऐसे मित्र थे जो चाहते थे कि जेपी और इंदिरा के साथ मेल मिलाप हो जाय। इसी बात पर जेपी जी कहते है कि उनका किसी व्यक्ति से झगड़ा नहीं है चाहे वो इंदिरा हो या कोई और। उन्हें तो नीतियों से झगड़ा है, सिद्धांतो से झगड़ा है, उनके कार्यों से झगड़ा है।
6. प्रत्येक अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिन्दी पाठ्य पुस्त भाग-2 के अर्धनारीश्वर “शीर्षक निबंध से ली गई है।इस निबंध के निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर जी है । दिनकर जी छायावदोत्तर युग के एक महान लेखक थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से दिनकर जी कहते है कि जिस तरह लता वृक्ष के अधीन रहकर फलती फूलती है ठीक उसी प्रकार एक पत्नी भी अपने पति के अधीन रहती है। स्त्री का सुख दुःख, प्रतिष्ठा अप्रतिष्ठा, जीवन मरण सभी पुरुष कि मर्ज़ी पर हो गए है। वह मानती है कि पुरुष के कारण ही उसका अस्तित्व है। पुरुष ही नारी का भरण पोषण करता है। जिस प्रकार से एक वृक्ष अपने लता का भरण पोषण करती है। ठीक उसी दृष्टि से पत्नी अपने पति की ओर आशा भरी निगाहो से देखती है।
7. जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे हिन्दी पाठ्य पुस्त भाग-2 के अर्धनारीश्वर “शीर्षक निबंध से ली गई है।इस निबंध के निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर जी है । दिनकर जी छायावदोत्तर युग के एक महान लेखक थे। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से दिनकर जी कहते है नारी में दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता जैसे गुण होते है। इन्हीं गुणों के कारण नारी विनाश से बची रहती है। यदि यही सारे गुण पुरुष में आ जाए तो उनके पौरुष में कोई दोष नहीं आता है। बल्कि वह पुरूष नारीत्व गुण से पूर्ण हो जाता है। वह कहते है कि पुरुष नारी का गुण लेकर और नारी पुरुष का गुण लेकर महान बन जाते है।
8. मैंने देखा, पवन में चीड़ के वृक्ष गर्मी में सुखकर मटमैले की कोईराग जो कोमल है, किन्तु करूण नहीं, अशांतिमय है, उद्वेगमय नहीं
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग -2 के “रोज़ ” शीर्षक कहानी से ली गई है। इस कहानी के लेखक अज्ञेय जी है। वे कथा साहित्य को एक महत्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, निबंधकार, संपादक और अध्यापक के रूप में जाने जाते है।
प्रस्तुत पंक्तिओ के माध्यम से अज्ञेय जी ने प्रकृति के माध्यम से जीवन के उन चीज़ों का वर्णन करते है जिससे जीवन प्रभावित है।चीड़ के वृक्ष का गर्मी से सुखकर मटमैला होना मालती के नीरस जीवन प्रतीक है। चीड़ के वृक्ष जो धीरे-धीरे गा रहे है कोई राग जो कोमल है यह नारी के कोमल भावनाओं के प्रतीक है। किन्तु करुण नहीं अशान्तिमय है किन्तु उद्वेगमय नहीं यह मालती के नीरस जीवन का वातावरण से समझौता का प्रतीक है।लेखक कहते है कि मालती के जीवन में सरसता नहीं है। वह एक ही ढर्रे पर रोज़ काम करना, एकरस जीवन और उसकी सहनशीलता उसके जीवन को उबाऊ बना देती है।
9. इस समय मैं यही सोच रहा था कि बड़ी उद्धत और चंचल मालती आज कितनी सीधी हो गई है, कितनी शांत और एक अखबार के टुकड़े को तरसती है…..यह क्या…यह.
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग -2 के “रोज़ ” शीर्षक कहानी से ली गई है। इस कहानी के लेखक अज्ञेय जी है। वे कथा साहित्य को एक महत्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, निबंधकार, संपादक और अध्यापक के रूप में जाने जाते है।
प्रस्तुत पंक्तिओ के माध्यम से अज्ञेय जी मालती के बचपन के दिनों के बारे में बताते है कि बचपन में मालती बहुत चंचल थी। वह स्कूल जाती थी और हाज़री बना कर क्लास से भाग जाती थी। वह बगीचे के पेड़ो पर चढ़कर आम तोड़कर खाती। वह पढ़ती नहीं उसके पिताजी उससे तंग आ गए थे। लेखक कहते है कि आज मालती, शादी के बाद कितनी सीधी हो गई है। वह अखबार का टुकड़ा सामने आते ही मालती झट से पढ़ने लगती मानो अख़बार उसे पहली बार मिला हो। इस तरह लेखक एक मध्यवर्गीय नारी को अभावों में भी जीने की इच्छा का संकेत देखता है और जीवन संघर्ष की प्रेरणा देता है।
10. मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग -2 के ” एक लेख और पत्र ” शीर्षक पत्र से ली गई है। इस पत्र के लेखक भगत सिंह जी है। वे भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से भगत सिंह जी कहते है की विपत्तियाँ मनुष्य को पूर्ण बनाती है इसका मतलब यह है कि मनुष्य सुख कि स्थिति में तो बड़े आराम से रहता है। लेकिन जब उस पर कोई दुःख आता है तो वह उसे दूर करने की कोशिश करता है । जिसके कारण उसका ज्ञान और कार्यक्षमता बढ़ जाती है और मुनष्य अपने जीवन में पूर्ण हो जाता है ।
11. हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज है।
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग -2 के ” एक लेख और पत्र ” शीर्षक पत्र से ली गई है इस पत्र के लेखक भगत सिंह जी है। वे भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से भगत सिंह जी कहते है की अगर कोई व्यक्ति यह सोचने लगे कि अगर कार्य नहीं करूँगा तो वह नहीं तो वह कार्य नहीं होगा तो यह पूर्णत गलत है वास्तव में मनुष्य विचार
12. मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग -2 के ” एक लेख और पत्र ” शीर्षक पत्र से ली गई है इस पत्र के लेखक भगत सिंह जी है। वे भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। भगत सिंह कहते हैं कि हमें एक बार किसी लक्ष्य या उद्देश्य का निर्धारण करने के बाद उस पर अडिग रहना चाहिए। हमें विश्वास रखना चाहिए कि हम अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेंगे।
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